सकारात्मक सोच के बिना अधूरी है जिंदगी 

December 1st, 2017 Posted In: Pune Express

Team TNV

पुणे –  सकारात्मक सोच के बिना जिंदगी अधूरी है. सकारात्मक सोच की शक्ति से घोर अन्धकार को भी आशा की किरणों में रौशनी में बदला जा सकता है. हमारे विचारों पर हमारा स्वंय का नियंत्रण होता है इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचाना है या नकारात्मक. ऐसे विचार गुजरात के बीएपीएस-अक्षरधाम के परमपूज्य साधू विवेक जीवनदास ने रखे.
 
विश्व शांति केन्द्र (आलंदी), माईर्स एमआइटी तथा संत श्री ज्ञानेश्‍वर-सतं श्री तुकाराम महाराज स्मृति व्याख्यानमाला न्यास के संयुक्त तत्वावधान में युनोस्को अध्यासन अंतर्गत आयोजित 22 वें व्याख्यानमाला के छठे सत्र में परमपूज्य साधू विवेक जीवनदास ने कहा, हमारे पास दो तरह के बीज होते है सकारात्मक विचार एवं नकारात्मक  जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एंव व्यवहार रूपी पेड का निर्धारण करता है. हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है. इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते है वैसा ही हमारा आचरण होता है. यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रूपी जमीन में कौन सा बीज बोते है. थोडी सी चेतना एवं सावधानी से हम कांटेदार पेड को महकते फूलों के पेड में बदल सकते है. तनावमुक्त जीवन जीने के लिए स्वयं की अलग विचार धार होनी चाहिए. 
जिसके लिए स्वयं में अनुशासन लाना होगा. साथ ही वैश्‍विक मूल्यों का अनुकरण करते हुए उसे अपने भीतर उतारणा है. साथ ही शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता है. इसके लिए जरूरी है ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग. जीवन में उन्नती करना है तो उसके लिए गुरू की आवश्यकता होती है. उसके बिना सहीं दिशा में हमारा कदम उठ ही नही सकता.
 
सुबह के सत्र में लोणेरे स्थित डॉ. बाबासाहब आंबेडकर तंत्रशिक्षा विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. सुभाष आवले तथा प्रा. दीपक आपटे के व्याख्यान हुए.
 
डॉ. सुभाष आवले ने कका, शिक्षक यह पद या व्यवसाय नही बल्कि वह एक शुद्ध विचारों की संकल्पना है. जिसमें सामर्थ, ऊर्जा एवं विश्‍व समाया हुआ है. एक अर्थ से देखा जाए तो शिक्षक गुरू ही होता है. वह नई पीढी तथा देश का भविष्य बनाने की शक्ति रखता है. लेकिन उसके लिए भी उसे सर्वोत्कृष्ट शिक्षकों की फौज तैयार करने की जिम्मेदारी उन्हीं की होती है. इसलिए शिक्षकों के पास शब्द सामर्थ होना जरूरी है. उसे बेहतरीन गायक, चित्रकार, अभिनेता एवं कीर्तनकार होना चाहिए. मा ही सबसे पहली शिक्षक होती है. उसलिए उसने पढाया हुआ पाठ हमें ताउम्र राह दिखाता है.
 
प्रा.दीपक आपटे ने कहा, विल पॉवर, दूसरों की सलाह और दूसरों के विचारों का सहीं तालमेल रखने पर ही जीवन में सफलता आपके कदम चुमती है. जो स्वयं से प्यार करता है वह पल सकारात्मक  सोचता है. सकारात्मक सोच  ही अंर्तमन एवं बाह्यमन को नियंत्रण करता है. इसलिए आप को सुख चाहिए या दुख यह आप पर निर्भर करता है. आप जैसा सोचोंगे वैसा ही बनोंगे. 
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रा. डी.पी. आपटे ने निभाई. एमआइटी स्कूल ऑफ टेलिकॉम के प्रकल्प संचालक डॉ. मिलिंद पांडे व एमआइटी के प्राचार्य डॉ.एल.के. क्षीरसागर आदि उपस्थित थे.
 
सूत्रसंचालन डॉ. सुरेंद्र प्रा. हेरकर ने किया. डॉ. एल. के. क्षीरसागर आभार माना.

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The author is a senior Journalist working in Goa for last one and half decade with the experience of covering wide-scale issues ranging from entertainment to politics and defense.

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