पुणे –
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मौसम बदलाव का प्रभाव के गोलमेज परिषद में डॉ.एन.जे.पवार की राय
स्वास्थ्य को लेकर भारत की सामाजिक एवं निजी स्थिति काफी चिंताजनक है. ऐसे में मौसम बदलाव का ज्यादा ही असर दिखाई देने लगा है. जिसके चलते दिन में तापमान वृद्धि और रात में निच्चांक तापमान जैसी परिस्थिती निर्माण हुई है. साथ ही अधिक मात्रा में बोरवेल के जल सेवन से गुर्दे की बिमारी में भी वृद्धि हुई है. जो प्राणघातक साबित हो रही है. इसलिए पुणे स्थित सेंटर फॉर क्लाइमेंट चेंजिंग में उक्त विषय पर बडे पैमाने पर अध्ययन के साथ उपाययोजना जरूरी है. ऐसे विचार शिवाजी विश्र्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.एन.जे.पवार ने रखे.
डॉ.विश्र्वशांति कराड एमआइटी विश्र्वशांति विद्यालय और तलेगांव दाभाडे स्थित माईर्स महाराष्ट्र इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एज्युकेशन एंड रिसर्च के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मौसम बदलाव का प्रभाव पर आयोजित एक दिवसीय गोलमेज परिषद के उद्घाटन मौके पर वे बोल रहे थे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआइटी विश्र्वशांति विश्र्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रा.डॉ.विश्र्वनाथ दा. कराड ने निभाई. सम्माननीय अतिथि के रूप में टेरी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र शेंडे
उपस्थित थे. साथ ही स्वास्थ्य विज्ञान विश्र्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रा. डॉ. अरुण जामकर, तलेगांव दाभाडे स्थित माईर्स इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एज्युकेशन एंड रिसर्च की कार्यकारी संचालिका डॉ. सुचित्रा कराड-नागरे तथा माइमर के प्राचार्य डॉ. आर.के. गुप्ता उपस्थित थे.
डॉ. एन.जे. पवार ने कहा, जलवायु परिवर्तन से पूरे समाज पर भले ही असर पड़ता हो लेकिन अब धीरे-धीरे जो तस्वीर उभर रही है उससे स्पष्ट हो रहा है कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों और उससे पैदा होने वाली मुश्किलों का सबसे ज़्यादा मनुष्य पर पड़ रहा है. तापमानवृद्धि, आम्ल्युक्त बारिश, वायू प्रदूषण, ओजन वायू का कम होता स्तर, जल प्रदूषण जैसे कई समस्या के चलते सृष्टि खतरे में आई है. जिसके चलते बाढ, भूकंप, त्सुनामी, तुफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं को बार बार सामना करना पड रहा है. पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडू जैसे राज्य में गिरते भूजल स्तर मनुष्य को जानलेवा बनता जा रहा है. यहां पर बोरवेल का जलसेवन होने से गर्दे के साथ कई बिमारियों ने जन्म लिया है. साथ ही तापमान बदलाव से मच्छरों से होनेवाले मलेरिया, हैपिटाईस जैसी बिमारियों के पॅटर्न में भी बदलाव हुआ है. कुल मिलाकर यही कह सकते है कि सृष्टि की सभी बातों के असंतुलन से सामाजिक स्वास्थ्य की चिंताजनक बढी है. ऐसे समय गहन रिसर्च की आवश्यकता है.
प्रा.डॉ.विश्र्वनाथ दा. कराड ने कहा, सार्वजनिक साफ सफाई के महत्व को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की. बढती जनसंख्या के साथ बढते वाहन एवं तकनीक से माणुष्य के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हुआ. कार्बनडाइ ऑक्साईड का जल और वातावरण में बढती मात्रा से सभी सजीव सृष्टि को खतरा महसूस होने लगा है. इस बात की गंभिरता को समझते हुए 30 वर्ष पूर्व श्री क्षेत्र आलंदी देहू परिसर विकास समिति के जरिए नदी प्रदूषण को कम करना और सफाई का कार्य चला रहे है. सामाजिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए छोटे और नियोजनबद्ध गावों का निर्माण करना जरूरी है.
डॉ. राजेंद्र शेंडे ने कहा, दिन ब दिन कम होते ओजन से कई बिमारियों को आमंत्रित किया गया है. जिसके चलते हर साल ढाई लाख लोगों की मौत हो रही है. इस विषय पर जितने
बडे पैमाने पर चर्चा होती है उतने बडे पैमाने पर उचित संवाद के जरिए इस विषय को समाज तक पहुंचाकर जागरुकता लाना होगी. शहर में प्रदूषण स्तर काफी होने से उसे नियंत्रण में लाना जरूरी है. अन्यथा दुष्पपरिणाम का सामना करने के लिए तैयार होना पडेगा.
तलेगांव दाभाडे स्थित माईर्स महाराष्ट्र इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एज्युकेशन एंड रिसर्च में आज सेंटर फॉर क्लाइमेंट चेंज एंड हेल्थ सेंटर का गठन किया गया. यहां पर उक्त विषय को
लेकर बडे पैमाने पर रिसर्च, उपाययोजन किए जाएंगे. साथ ही सामाजिक स्वास्थ्य संदर्भ में जागरुकता लाई जाएगी. कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ. सुचित्रा कराड-नागरे ने रखी. डॉ. जामकर ने गोलमेज परिषद के आयोजन की भूमिका रखी.
सूत्रसंचालन डॉ. सुषमा शर्मा औ आभार डॉ. डेरेक डिसूजा ने माना.